शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

आईये हम सब मिलकर लोकतंत्र को भाड़ में झोंक दें

हालांकि ये अब कोई नयी नयी बात नहीं रह गयी है, इसलिए बेशक इसे समाचारपत्रों में पहले पन्ने पर जगह मिले मगर यकीनन पढने देखने में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं रहती है। और फ़िर हो भी क्यों, ये तो अब एक परम्परा सी बन गयी है, आख़िर मजबूत लोकतंत्र की यही तो पहचान है की अरबों लोगों के प्रतिनिधि, खुल्लमखुल्ला, लोगों के विश्वास , लोगों के पैसे का मजाक बना रहे हैं। कल एक बार फ़िर संसद सत्र में वही सब कुछ दोहराया गया जो अब तो एक कार्यप्रानाली ही बन गयी है , और इस बात तो अध्यक्ष ने कुपित हो कर सबको श्राप देने वाले लहजे में खूब कोस भी दिया। मगर मुझे पूरा यकीन है की उन पर ऐसे किसी भी श्राप का असर बिल्कुल भी नहीं होने वाला है।

हो सकता है की सब मेरे नजरिये से सहमत न हों, तो कुछ भी आगे कहने से पहले सिर्फ़ कुछ बातों को जान लेते हैं ।:-

हमारे इन जनप्रतिनिधियों को हमारी समाज सेवा के बदले में जो थोड़ा बहुत मिलता है वो ये है,

मासिक वेतन १६,००० रुपैये
मासिक निर्वाचन भत्ता २०.००० रुपैये
मासिक कार्यालय खर्च २०.०० रूपी
दैनिक भत्ता (संसद सत्र के दौरान) .०० रुपैये
मुफ्त प्रथम श्रेणी सी श्रेणी वार्षिक रेल पास
सहयोगी के लिए भी
दिल्ली में मुफ्त आवास
,००० लीटर मुफ्त पानी (कमाल है की फ़िर भी जनता का इतना खून पी जाते हैं )
वर्ष में ५० हजार यूनिट मुफ्त बिजली
सोफा कवर ,परदे सिलवाने का खर्चा
,०० रुपैये तक का फर्निचर मुफ्त
(दैनिक भास्कर से saabhaar )
लिस्ट लम्बी है पूरी पढूंगा तो सत्र बुलाना पडेगा .

तो देख लिया आपने कितना कम मिलता है बेचारों को , तो ऐसे में भी यदि वे चुपचाप पूरी निष्ठा और म्हणत से लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं, तो फ़िर उनपर सवाल उठाना तो नाइंसाफी है।

कमाल है , जहाँ पर संजय दत्त, राजू श्रीवास्तव, धर्मेन्द्र, गोविंदा, हेमामालिनी, जयाप्रदा, जयाबच्चन , अजहरुद्दीन, चेतन शर्मा, और पता नहीं कौन कौन से वरिष्ट और अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं वहां पर भी हम लोग ये सपना देख रहे हैं की काश की यहाँ भी कोई ओबामा जैसा राष्ट्रपति हो पाटा।

मेरे विचार से तो अब समय आ गया है की हमें इस लोकतंत्र को भाड़ में झोंक देना चाहिए, या फ़िर अपने महँ प्रतिनिधियों को तालिबान के हवाले कर दें।

5 टिप्‍पणियां:

  1. गुस्‍सा किसी समस्‍या का समाधान नहीं है।

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  2. ऐसा आक्रोश मित्र!! ये तो ठीक नहीं.

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  3. लोकतंत्र को झोंकने की बजाय लोकतांत्रिक तरीके से उन नेताओं को इतिहास की गर्त में झॊंकना होगा जो जनता के स्थान पर खुद को और परिवारवाद को बढावा दे रहे हैं। इसके लिए कहीं न कहीं हम यानि जनता ही तो जिम्मेदार है।

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  4. aap sabka bahut bhaut dhanyavaad , padhne aur saraahne ke liye,aapkee baaton se sehmat hoon.bhai vinya jee main to pehle hee sarkaaree sewa mein fans chukaa hoon.fir bhee follow to kar hee loongaa aapko.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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